देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी देश में मौजूद वर्तमान तंत्र के चेहरे पर एक कालिख है जिसे चाहने पर भी साफ नहीं किया जा सकेगा। हो सकता है यह टिप्पणी न्यायालय के रिकॉर्ड का भाग न बने, लेकिन माध्यमों ने इसे स्थाई रूप से रिकॉर्ड का भाग बना दिया है। इस टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध जितने भी उपाय सरकार द्वारा आज तक किए गए हैं वे सिर्फ दिखावा मात्र हैं। उन से भ्रष्टाचार के दैत्य का बाल भी बांका नहीं हो सका है। हाँ दिखावे के नाम पर हर वर्ष कुछ व्यक्तियों को सजाएँ दी जाती हैं। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जो-जो भी उपाय किए गये वे सभी स्वयं भ्रष्टाचार की गंगा में स्नान करते दिखाई दिए।
कोई तीस पैंतीस वर्ष पहले तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन-अभियान भी चले लेकिन उन की परिणति ने यह सिद्ध कर दिया कि मौजूदा व्यवस्था के चलते भ्रष्टाचार का कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता है। अब तो यदि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कोई जन-अभियान की आरंभ करता दिखाई पड़े तो लोग उस की मजाक उड़ाते हैं। खुद न्यायपालिका भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है, अपितु वहाँ भी इस की मात्रा में वृद्धि ही हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल सरकार पर ही नहीं समूची राजनीति और व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। यह संकेत दे रही है कि इस देश की मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट कर के एक नई व्यवस्था की स्थापना आवश्यकता है। देखना यही है कि उस के लिए देश कब खुद को तैयार कर पाता है।
बहुत अच्छा लिखा है आपने, कई देशों में तो रिश्वत के दाम खुद सरकार ने निश्चित कर दिए हैं
ReplyDeleteआप ब्लोगिंग के क्षेत्र में नए हैं तो आपको कुछ परेशानियों का सामना करना पद सकता है, ब्लोगिंग से सम्बंधित किसी भी परेशानी को आप हमारे फोरम पर पोस्ट कीजिये आपके हर सवाल का जबाब दिया जायेगा|
ब्लोगर फोरम
ऐसा किया जाए कि यदि कोई व्यक्ति मामले को निपटाना चाहता है तो उससे ढाई हजार रुपये मांगे जा सकते हैं। इस तरह से हर आदमी को पता चल लाएगा कि उसे कितनी रिश्वत देनी है।
ReplyDeletekuchh din me yah raashi vaidh samjhi jaane lagegi aur iske upar/alaawaa alag se rishwat maangi jaane lagegi.
sach to yah hai ki samaaj ke ek bade hisse ne bhrshtaachaar ko maansik taur par bahut pahle hi sweekaar kar liya hai.