Monday, November 22, 2010

''अंधेर नगरी-चौपट राजा'' और सर्वत्र फैली हुई अराजकता।

संसद और विधानसभाएं कानून बनाती हैं। ये कानून किताबों में दर्ज हो जाते हैं। बहुत सारे पुराने कानून हैं और हर साल बहुत से कानून बनते हैं। नयी परिस्थितियों के लिये नये कानून। पुराने कानूनों में संशोधन भी किये जाते हैं। इसलिए कि समाज और देश को सही तरीके से चलाया जा सके, कोई अपनी मनमानी नहीं कर सके।
पर इन कानूनों को कोई न माने तो?
न माने तो, अगर कोई अपराधिक है तो पुलिस चालान करेगी। मुकदमा चलेगा। सजा होगी। सजा के डर से कानून को मानना ही होगा। अगर कानून सिविल है, तो आप या जिस को भी किसी के काम से परेशानी हो वह अदालत के पास सीधे जा कर दावा कर सकता है और कानून की बात को मनवा सकता है।
पर सजा या फिर कानून की बात मनवाने का काम तो तभी होगा न? जब अदालत फैसला देगी?
फिर एक अदालत के फैसले के बाद भी तो अपील है, दूसरी अपील है?
तब वह दिन कब आएगा? जब कानून की पालना हो पाएगी?
जब आखरी अदालत का फैसला हो कर लागू होगा
और आखिरी अदालत का फैसला होने में ही कम से कम बीस पच्चीस बरस तो लग ही जाएंगे।
फिर कौन संसद और विधानसभाओं के बनाए कानूनों की परवाह करता है।
क्या इन विधानसभाओं और संसद को नहीं सोचना चाहिए कि उन के बनाए कानूनों को लागू कैसे कराया जा सकेगा?
शायद ऐसा सोचने की वहां कोई जरूरत महसूस ही नहीं करता है? वहाँ केवल यह सोचा जाता है कि संसद में या विधानसभाओं में वे ऐसे दिखें कि अगले चुनाव में वोट लिए जा सकें।
यह तो अब सब के सामने है कि देश में अदालतें कम हैं। जरूरत की 16 परसेंट भी नहीं। तो क्या इन्हें बढ़ाया नहीं जाना चाहिए?
यह समय की आवश्यकता है कि देश में अदालतों की संख्या तुरंत बढ़ाई जाए। एक लक्ष्य निर्धारित किया जाए कि आज से पाँच, दस, पन्द्रह बरस बाद देश में इतनी संख्या में अदालतें होनी चाहिए। हमारा लक्ष्य तीव्रतम गति से न्याय प्रदान करना होना चाहिए। किसी भी अदालत में कोई भी मुकदमा दो साल से अधिक लम्बित नहीं रहना चाहिए। तभी हम विकसित देशों के समान सुचारु रूप से राज्य व्यवस्था को चला पाऐंगे। कानून और व्यवस्था को बनाए रख पाऐंगे। और यह नहीं कर पाए तो, निश्चित ही हम अपने देश में कानून को न मानने वालों की बहुसंख्या और ''अंधेर नगरी-चौपट राजा'' पाऐंगे, और पाऐंगे सर्वत्र फैली हुई अराजकता।

5 comments:

  1. .

    निसंदेह न्यायालयों की संख्या बढाई जानी चाहिए। न्याय की आशा में लोग बूढ़े हो जाते हैं । लेकिन न्याय नहीं मिलता ।

    .

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  2. अदालतों में तेजी लाने का प्रयास करना चाहिए|

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  3. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  4. अराजक स्थिति के सुधार के प्रयासों की वास्तविक चाहत... शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद...

    आप मेरे ब्लाग पर भी पधारें व अपने अमूल्य सुझावों से मेरा मार्गदर्शऩ व उत्साहवर्द्धऩ करें, ऐसी कामना है । मेरे ब्लाग जो अभी आपके देखने में न आ पाये होंगे अतः उनका URL मैं नीचे दे रहा हूँ । जब भी आपको समय मिल सके आप यहाँ अवश्य विजीट करें-

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    और एक निवेदन भी ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आवे तो कृपया उसे अपना समर्थन भी अवश्य प्रदान करें. पुनः धन्यवाद सहित...

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  5. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
    के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
    का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

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